ONDC को Game Changer बनाइए, वरना Amazon-Flipkart ही Rule करेंगे

Amazon Prime Day और Quick Commerce डिस्काउंट्स के बीच भारत के छोटे व्यापारी संकट में हैं। जानिए कैसे E-Commerce प्लेटफॉर्म MSMEs और लोकल मैन्युफैक्चरिंग को पीछे धकेल रहे हैं।

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Team TICE
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Amazon Prime Day Sale

क्या ई-कॉमर्स से बर्बाद हो रहा है स्टार्टअप भारत का सपना?

भारत के हर शहर और हर कस्बे में कुछ तो बदल रहा है। ऑनलाइन शॉपिंग अब फैशन नहीं, आदत बन चुकी है। लेकिन यह बदलाव हर किसी के लिए फायदेमंद नहीं है। एक तरफ़ जहां Amazon, Flipkart और Zepto जैसी कंपनियां सेल्स और डिस्काउंट्स की बौछार कर रही हैं, वहीं दूसरी तरफ़ छोटे दुकानदार, कारीगर और MSMEs खामोशी से हाशिये पर जा रहे हैं।

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12 से 14 जुलाई तक Amazon Prime Day Sale फिर लौट रही है, भारी छूट और एक्सक्लूसिव डील्स के साथ। Meesho, JioMart और Flipkart जैसे बाकी प्लेटफॉर्म भी Monsoon Sale की तैयारी में हैं। उधर, Blinkit और Zepto जैसे Quick Commerce ऐप्स पर तो हर दिन कोई न कोई सेल चल रही है — “Buy 1 Get 1”, “10-minute delivery”, या “flash discount” के नाम पर।

ग्राहकों के लिए यह त्यौहार जैसा माहौल है। लेकिन सवाल ये है — इन डिस्काउंट्स की असली क़ीमत कौन चुका रहा है?

हर ऑनलाइन डील के पीछे छुपा है किसी लोकल व्यापारी का नुकसान, किसी छोटे मैन्युफैक्चरर की बिक्री में गिरावट, और एक भारत-निर्मित प्रोडक्ट की जगह चाइनीज़ माल का कब्ज़ा। यह सिर्फ़ ‘तकनीकी बदलाव’ नहीं — एक छुपी हुई रणनीति भी है, जिसमें नियम टूटते हैं, नीति मौन रहती है, और भारत का उद्यमी धीरे-धीरे मिटता जाता है।

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सस्ते प्रोडक्ट्स, फेक डिस्काउंट्स और लोकल का सफाया

पिछले 10 सालों में Amazon और Flipkart जैसे प्लेटफॉर्म्स ने भारत के रिटेल को पूरी तरह बदल दिया है। ऑनलाइन शॉपिंग अब फैशन नहीं, आदत बन चुकी है। लेकिन इसी बदलाव में लाखों छोटे दुकानदार और MSMEs पीछे छूट गए।

एक रिपोर्ट के अनुसार, Amazon और Flipkart पर बिकने वाले 70% से ज़्यादा प्रोडक्ट्स चाइना से आते हैं। ये सामान Singapore जैसे टैक्स हेवन्स के जरिए भारत पहुंचता है ताकि Free Trade Agreement और टैक्स कानूनों की loopholes का फायदा उठाया जा सके।

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2024 में Global Trade Research Initiative ने बताया कि चाइनीज़ प्रोडक्ट्स ने भारत के toy market का 52% हिस्सा कब्ज़ा लिया है। छाते, चमड़े के सामान और कांच के बर्तन जैसे क्षेत्रों में भी लोकल प्रोडक्शन को सीधा नुकसान हो रहा है।

"मार्केटप्लेस" के नाम पर Monopoly

भारत के कानून कहते हैं कि विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियां प्रोडक्ट्स का स्टॉक नहीं रख सकतीं। लेकिन "preferred sellers" के बहाने ये कंपनियां ख़ुद ही inventory और pricing कंट्रोल कर रही हैं।

2024 में CCI (Competition Commission of India) की रिपोर्ट में साफ़ कहा गया कि Amazon इंडिया की बिक्री का दो-तिहाई हिस्सा सिर्फ़ 35 sellers से आता है। इनमें से ज़्यादातर Amazon के खुद के Joint Ventures (जैसे Cloudtail और Appario) हैं।

बाकी लाखों sellers सिर्फ़ database की entries बनकर रह गए हैं। जिनका ना visibility है, ना margin, और ना ही chance।

Quick Commerce: 10 मिनट की Delivery, 10 साल का नुक़सान

Zepto, Blinkit, Swiggy Instamart जैसी कंपनियों ने अब “Quick Commerce” के नाम पर नई लड़ाई छेड़ दी है। 10 मिनट में सब कुछ चाहिए – दूध, ब्रेड, चायपत्ती से लेकर सब्ज़ियां और दवाइयां तक।

लेकिन इसके पीछे जो dark stores चल रहे हैं, वो ज़्यादातर residential areas में बिना लाइसेंस के operate हो रहे हैं। ना zoning कानूनों की परवाह, ना traffic और safety का ख्याल।

महाराष्ट्र FDA ने पुणे और मुंबई में कई dark stores में expired items, fungal growth और hygiene violations पाए हैं। लेकिन कार्रवाई सीमित है।

BIS (Bureau of Indian Standards) ने भी Amazon के warehouses से ISI-certification के बिना toys और electronics जब्त किए थे। पर accountability? Zero.

ये Innovation नहीं, Capital Dumping है

कई लोग quick delivery को innovation समझते हैं। लेकिन सच्चाई ये है कि ये कंपनियां सिर्फ़ investor का पैसा जला रही हैं। ऐसा कोई नया tech नहीं है जिससे societal problem solve हो रहा हो।

10 मिनट में ब्रेड डिलीवर करना convenience हो सकता है, पर ये इंडिया की economy का future नहीं है।

क्या करें ताकि खेल बराबरी का हो?

भारत को e-commerce से डरने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन नियम सबके लिए बराबर हों, ये ज़रूरी है।

1. मौजूदा कानूनों को लागू करें

FDI रूल्स, consumer protection, और product labelling को सख्ती से enforce किया जाए।

2. Digital Competition Act पास हो

पिछले 5 सालों से फंसा ये बिल अब और delay नहीं होना चाहिए।

3. ONDC को सफल बनाएं

Open Network for Digital Commerce को real user adoption के लायक बनाएं। सिर्फ़ sellers जोड़ने से काम नहीं चलेगा।

4. National E-commerce Policy को Finalize करें

Flash sales, algorithm bias, seller parity और local sourcing जैसे मुद्दों को पॉलिसी में कवर किया जाए।

5. Dark Stores को Regulate करें

Residential zones में warehouses पर रोक लगे। Commercial licensing और safety compliance अनिवार्य हो।

6. Platforms को ज़िम्मेदार बनाएं

Amazon, Flipkart, Blinkit, Zepto को transparency reports और seller data publish करना चाहिए।

7. Customers को aware बनाएं

हर बार जब आप पास की दुकान छोड़कर online सामान मंगाते हैं, तो एक local business कमजोर होता है।

भारत का startup सपना सिर्फ़ Silicon Valley-टाइप unicorns से पूरा नहीं होगा

Startup Bharat का मतलब सिर्फ़ AI apps या VC funding नहीं है। इसका मतलब है — वो सब्ज़ीवाला, वो किताबों की दुकान, वो जूते सिलने वाला, और वो लाखों MSMEs जो भारत की असली अर्थव्यवस्था चलाते हैं।

अगर हम अब भी नहीं जागे, तो कल को ना entrepreneurship बचेगा, ना रोजगार।

E-Commerce Startup Bharat Digital Competition Bill